मापनी १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ है
मो'हब्बत के सफर में फिर चलो कुछ अनसुनी कर दे |
करें विश्वास …साथी पर , हृदय …संजीवनी …कर दे |
सिसकता है...अमावस में.. . दिवाना कौन तन्हा सा ,
जला कर प्रेम का दीपक..चलो कुछ रोशनी कर दें |
चले यह सिलसिला यूं ही..मो'हब्बत की इबादत से...
न शिकवे हों..किसी को भी, जुबांने चासनी कर दें |
न लूटे अब सपन कोई.. न हो इंसानियत रूसवा...,
जहाँ में..नेकियों की हर जगह फिर चाँदनी कर दे |
खुदा से मांगता हूँ मै..झुका नफरत के' परचम को...
मेरे हिदुस्तां को फिर **मुकद्दस सरजमीं कर दे |
(अनुपम आलोक )