Tuesday, July 14, 2015

मेरे हिंदुस्तां को ......एक सैनिक की चिट्ठी भारत के प्रधान सेवक के नाम......! चाहें जैसी...लाचारी हो....चाहें जैसी....मजबूरी हो , लेकिन अब केसर क्यारी का सम्मान नहीं घटने देंगे | सम्पूर्ण राष्ट्र की रक्षा में बट जाये भले तन टुकड़ों में, पर भारत माँ के आँचल को अब और नहीं बटने देंगे | लिपट तिरंगे में कब तक, हम अपने घर को जायेंगे | इंद्रप्रस्थ की नाकामी को कब तक यहाँ गिनायेंगे | जेहादी..सैनिक के मुख पर, मार तमाचा....... जिंदा हैं | राजभवन लाचार भले हो , लेकिन हम .....शर्मिंदा हैं | रणभेरी का शँखनाद ही , सारे कलुष ...मिटायेगा | केवल निंदा से मोदी जी , दाग नहीं ...धुल पायेगा | बेशक जनमत साथ तुम्हारे , रोज इबादत ....लिखते हो | पर सुकमा और कुपवाड़ा पर, हमें शिखंडी ........लगते हो | याचक बन कश्मीर मांग कर, मत माँ का .....अपमान करो | या तो .......छोड़ो काश्मीर या, गांडीव ...........संधान करो | हम गद्दारों के पत्थर से, मजबूर नहीं हो सकते है | हम काश्मीर की घाटी से, अब दूर नहीं हो सकते हैं | हम सबको बंधन मुक्त करो, सब आर पार कर लेने दो | दोगले और .....गद्दारों की , खालों में,भुस भर लेने दो | माओवादी, नक्सलवादी, दुनिया के ..सारे जेहादी | माँगेगे मौत स्वयं तुमसे , बस दे दो प्यारे आजादी | कहते हो जिसे पड़ोसी तुम, भाई कहकर समझाते हो | लेकिन यह कड़वा सत्य सही, सांपो को ....दूध पिलाते हो | अपनी सेना के वीरों का अब, और न तुम ....अपमान करो | अंतिम दुश्मन तक लड़ने का, बस जारी अब फरमान करो | इन केचुओं की कंपोस्ट बना. सीमा पर हमें ...छिड़कने दो | लाहौर, कंराची के.. सिर पर, बिजली बन हमें कड़कने दो | आतंकवाद का .. सारा विष , इनके तालू ........से खींचेगे | भारत माता के .... केशों को, इनके रुधिरों से .......सींचेगे | फिर आर्यावृत की सीमा में, दोगला ईमान ...नहीं होगा | राणांप्रताप की ...धरती पर, अब ..पाकिस्तान नहीं होगा | बस मेरा .....यही...निवेदन है, अंतिम निर्णय अब कर डालो | आजादी ..दे दो .......सेना को, तुम दिल्ली को... देखो-भालो | (अनुपम आलोक)

मापनी १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ है

मो'हब्बत के सफर में फिर चलो कुछ अनसुनी कर दे |
करें विश्वास …साथी पर , हृदय …संजीवनी …कर दे |
सिसकता है...अमावस में.. . दिवाना कौन तन्हा सा ,
जला कर प्रेम का दीपक..चलो कुछ रोशनी कर दें |
चले यह सिलसिला यूं ही..मो'हब्बत की इबादत से...
न शिकवे हों..किसी को भी, जुबांने चासनी कर दें |
न लूटे अब सपन कोई..  न हो इंसानियत रूसवा...,
जहाँ में..नेकियों की हर जगह फिर चाँदनी कर दे |
खुदा से मांगता हूँ मै..झुका नफरत के' परचम को...
मेरे हिदुस्तां को फिर **मुकद्दस सरजमीं कर दे |
                                     (अनुपम आलोक )







Thursday, July 9, 2015

बेटियां ........संसोधित.... रचना माँ मुझे भी प्यार दो... <<<><><><><><><> माँ मुझे भी प्यार दो...! माँ मुझे भी प्यार दो...! मैं अजन्मीं....कोख तेरी....है...मेरा संसार माँ..! आवरण तन आपका..तेरा.रक्त ही आहार माँ..! हूँ भले मैं..सृष्ठि प्रभु की..पर तेरा अधिकार हूँ..! मैं सृजन हूँ..आपका...माँ..आपका संसार हूँ...! हे जननि जन कर मुझे तुम,इक नया संसार दो | माँ..मुझे भी प्यार दो..! माँ मुझे भी प्यार दो...! त्याग तेरा..तन में मेरे..अब..धड़कने भी लगा है | संस्कारों..की सुरभि से..मन महकने भी लगा है | आपके..बलिदान को माँ..चिंतनों में..भर पढूंगी | आपके सम्मान हित माँ..सच कहूँ युग से लड़ूंगी | जग के..झूंठे दंभ में आ..माँ..न मुझको मार दो | माँ मुझे भी प्यार दो...!. माँ मुझे भी प्यार दो ...! माँ तेरी जननी ने भी तो..एक दिन..तुमको जना था | तब सृजन के रीति पथ पर पितु तुम्हारा वर बना था | फिर..युगल स्पंदनों से..सृजन की..परणीति महकी | माँ ..तुम्हें भी ..माँ बनाने ...कोख में ..तेरे मैं चहकी | इस सृजन के..रीतिपथ का..बस मुझे अधिकार दो | माँ मुझे भी प्यार दो...! माँ मुझे भी प्यार दो ...! क्या रहोगी खुश..सृजन..अपना स्वयं ही हार कर | शक्ति पूजित..इस धरा पर....शक्ति का संहार कर | अहं के कुंठित पथों पर..मत करो बलिदान ममता | सृष्ठि के..उपहार में है ....दंभ की..प्रतिमान समता | माँ का गौरव..हो कलंकित..खुद न खुदको हार दो | माँ मुझे भी प्यार दो...! माँ मुझे भी प्यार दो...! ( अनुपम आलोक )

जिंदगी में ..आचरण का ,व्याकरण हैं बेटियाँ |
दो कुलों की तरणि-तारण, आवरण हैं बेटियाँ |
सम्पदा.. सब बांटते सुत,बेटियाँ ..दुख बांटती ,
है यही कारण ..धरा का ,जागरण.. हैं बेटियाँ |

बन के गौरव सदन बढ़ रहीं बेटियाँ |
ज्ञान धन में मगन  पढ़ रहीं बेटियाँ |
पंख के बल..बिहंगो ने अंबर छुआ,
पंख के बिन गगन चढ़ रहीं बेटियाँ |
                       (अनुपम आलोक )

                                (अनुपम आलोक )

अमृत समझ विष पिये जा रहे हैं .... (अनुपम आलोक )

भरम पर भरम सब दिये जा रहे है |
हया त्याग कर सब जिये जा रहे हैं |
हुय़े..चेतना शून्य..कितना प्रगति में,
अमृत समझ विष पिये जा रहे हैं |
                        (अनुपम आलोक )

Wednesday, July 8, 2015

वर्षा श्रृतु .....मेरी नजर से


धरा-मेघ..मिल..फूंक रहे स्वर, बरखा की ..शहनाई में |
फूट रही..कण-कण ..से मस्ती, नैसर्गिक ..अंगनाई में |
यौवन भार लदे कुंजन मा,दादुर,मोर,कोयलिया कुहकै,
ओढ़े धरती ..हरित चुनरिया , सावन ..की..पहुनाई में |
                                      (अनुपम आलोक )
चित्र मुक्तक...  56.......मुक्तक लोक

Monday, July 6, 2015

मित्रता ..... और ....मित्र

नमन बंधु वर.....
बंधु चिंतन..कसौटी, कसो स्वर्ण पा |
उर न उन्मुक्त हो, धर्म का..वर्ण का |
हैं जरुरी.. मनुज के लिये , मित्र दो,
एक हो कृष्ण सा,,,एक हो कर्ण सा |
                         "अनुपम आलोक "

Sunday, July 5, 2015

अपना चिंतन

मुक्तक मंच.... शीर्षक..... सफर
लक्ष्य खुद पास, आता नहीं दोस्तो |
पुष्प खुद पथ, सजाता नहीं दोस्तो |
जिंदगी का सफर है, सुहाना मगर,
साथ में कोई' जाता नहीं दोस्तो |
                     "  अनुपम आलोक "

बेटियों ने छुआ आसमान ......

शब्द मुक्तक -- 56
शीर्षक शब्द... पंक्षी,,,, पक्षी. आदि समनार्थी...
देश की प्रतिभावान बालिकाओं को समर्पित....!

बन के गौरव सदन बढ़ रहीं बेटियाँ |
ज्ञान धन में मगन  पढ़ रहीं बेटियाँ |
पंख के बल..बिहंगो ने अंबर छुआ,
बिन परों के गगन उड़ रहीं बेटियाँ |
                       (अनुपम आलोक )

Wednesday, July 1, 2015

वर्ण पिरामिड .

वर्ण पिरामिड सप्ताह - 9
शब्द - पात,,, पत्ते,,,, पल्लव... आदि...!
सप्ताहाध्यक्ष आदरणींया अनीता जैन जी को स.. सम्मान प्रेषित.....!
(1)

है
चाही
वृक्षों ने
मनुज से
मानवीयता
पल्लव..पल्लव
जीवन पथ पर..!

(2)

है
तन
एकाकी
तरुवर
रिश्ते हैं पात
जिनका पोषण
कर्तव्यों का रोपण
                                 "अनुपम आलोक "

मुक्तक मंथन 55 चित्र मुक्तक

नाव की तर्ज पर चल रही जिंदगी |
चांद की तर्ज पर ढ़ल रही जिंदगी |
हो जो ' मांझी अगर साथ विश्वास का,
बीच खुशियों के ' फिर पल रही जिंदगी |
                            (अनुपम आलोक )

मुक्तक मंच पदांत पर आधारित ..... समारोह -- 73

पदांत... नहीं आते
मेरी खुशियों को अब वह, नेह से ढ़कने नहीं आते |
मेरे जख्मों को सहलाने,,,,,,, मेरे अपने नहीं आते |
सजा तन्हाई की देकर,,, गया... मुसिंफ मेरा जबसे,
मेरी आँखों में अब,,,,,महबूब के.. सपने नहीं आते |
                                  { अनुपम आलोक }