धरा-मेघ..मिल..फूंक रहे स्वर, बरखा की ..शहनाई में |
फूट रही..कण-कण ..से मस्ती, नैसर्गिक ..अंगनाई में |
यौवन भार लदे कुंजन मा,दादुर,मोर,कोयलिया कुहकै,
ओढ़े धरती ..हरित चुनरिया , सावन ..की..पहुनाई में |
(अनुपम आलोक )
चित्र मुक्तक... 56.......मुक्तक लोक
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