Wednesday, July 8, 2015

वर्षा श्रृतु .....मेरी नजर से


धरा-मेघ..मिल..फूंक रहे स्वर, बरखा की ..शहनाई में |
फूट रही..कण-कण ..से मस्ती, नैसर्गिक ..अंगनाई में |
यौवन भार लदे कुंजन मा,दादुर,मोर,कोयलिया कुहकै,
ओढ़े धरती ..हरित चुनरिया , सावन ..की..पहुनाई में |
                                      (अनुपम आलोक )
चित्र मुक्तक...  56.......मुक्तक लोक

No comments:

Post a Comment